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जन लोकपाल बिल जिसके लिए अन्ना और उनकी टीम पिछले एक साल से संघर्ष कर रही है , जिसको लेकर सत्ता पक्ष एवं विपक्ष तरह तरह की सियासी चालें चल रहे हैं , जो भ्रष्टाचार से त्रस्त भारतीयों में उत्साह का संचार सा कर रहा है , जिसे लेकर पूरा देश एकजुट हो गया है तथा जिसकी गर्मी से संसद की नीव जो की पहले ही माननीयों के व्यवहार से कलंकित एवं धूमिल है, हिल गयी है, बहुत जल्द संसद के पटल पर रखा जाने वाला है!
इसमें कोई संदेह नहीं है कि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में स्थितियां बद से बदतर हो चली हैं , भ्रष्टाचार अपने चरम पर है, महंगाई भी आम आदमी को रुला रही है ,और जनता के प्रश्नों का समुचित उत्तर उनके मंत्रियों एवं जनप्रतिनिधियों के द्वारा नहीं मिलता उल्टे कुछ लोग जो सरकार में हैं , आये दिन गैर जिम्मेदाराना बयान देते हैं , अतः हमें एक सशक्त लोकपाल कि आवश्यकता है , जिसके माध्यम से हम अपने मंत्रियों को अपने प्रति जवाबदेह बना सकें! पर कुछ मांगे जो अन्ना टीम सरकार से मनवाना चाहती है , उसपर हमें बहुत विचार करना होगा!
सबसे पहली बात , न्यायपालिका किसी भी देश की सर्वोच्च संस्था होती है , जो किसी भी प्रणाली में निरंकुशता पर नियंत्रण रखती है ! अतः हमें उसकी गरिमा से कोई समझौता नहीं करना चाहिए , वो राजतन्त्र में भी सर्वोच्च एवं स्वतंत्र होती थी , आज भी है और सदैव रहनी चाहिए उसे किसी भी समिति के अधीन करना तर्कसंगत नहीं है ! इससे इंकार नहीं किया जा सकता है , कि आज कल लोग न्याय खरीद रहे हैं और वहां भी भ्रष्टाचार अस्तित्व में है , पर हम उसे किसी भी समिति के सुपुर्द नहीं कर सकते हैं , उसके किसी न्यायाधीश पर यदि आरोप लगता है तो उस पर कार्यवाही के लिए कोई भी ऊपरी अदालतों में जा सकता है , और भी कई अन्य रास्ते हैं !
दूसरी बात प्रधानमंत्री को लोकपाल के अधीन करने की है , मेरा मानना है कि प्रधानमंत्री जनता के द्वारा सीधे चुना जाता है और इसी वजह से व्यावहारिक रूप से उसे असीमित शक्तियां प्राप्त हैं , ऐसे में उसे किसी ऐसी समिति के अधीन करना जो कि जनता द्वारा नहीं चुनी गयी है क्या युक्तिसंगत है ? हम अनेकों उदहारण देख सकते हैं जब केंद्र सरकार राज्यपालों के माध्यम से जनतांत्रिक तरीके से चुनी हुई प्रदेश सरकार को अस्थिर करने का प्रयास करती हैं , कभी कभी प्रधानमंत्री कोई जनहित का कार्य भी यदि करना चाहे तो वहां तमाम प्राथमिकतायें और वर्जनाएं हैं जिससे वो शीघ्रता से कोई कदम नहीं उठा पता है , ऐसे में यदि उसे एक और वर्जना में रखा जाए तो क्या इससे उसकी क्रियाशीलता प्रभावित नहीं हो सकती है?
अतः हमें एक ऐसे लोकपाल कि जरुरत है जो वास्तव में उस लक्ष्य को प्राप्त करने में सहायक हो जिसके लिए इसकी मांग कि जा रही है ! सरकार के द्वारा प्रस्तावित लोकपाल में कई खामियां है , सबसे बड़ी कमी तो इसमें यही है कि लोकपाल समिति स्वयं कोई जांच नहीं कर पाएगी , इससे तो इसकी प्रासंगिकता ही समाप्त हो जायेगी ! सीबीआई को पूर्ण रूप से लोकपाल के अधीन करना आवश्यक है , उसके ड्राफ्ट को देख कर यही लगता है कि वो किसिस तरह इस मुद्दे को रफा दफा कर देना चाहती है , पर शायद वो अन्ना जी के मजबूत इरादों को अभी भी समझ नहीं पायी!
भ्रष्टाचार के खिलाफ जिस तरह से , मजबूत इरादों के साथ टीम अन्ना ने संघर्ष किया है उसने सामान्य जन को अपनी ओर बरबस खींच लिया है , अतः लोगों कि उम्मीदें उनसे बहुत बढ़ गयी हैं , अब वो देश के प्राण हैं ऐसे में टीम अन्ना के सभी सदस्यों को किसी भी विवाद से बचना चाहिए ताकि लोगों का भरोसा उनपर अक्षुण बना रहे , और एक मजबूत लोकपाल पारित करने को सत्ता पक्ष एवं विपक्ष संसद में बाध्य हों! इन्हें पूर्व में प्रशांत भूषण के विवादस्पद बयान, अग्निवेश विवाद और बाद में किरण बेदी से जुड़े बयान से सीख लेकर अपने हर कदम पर सावधानी बरतनी होगी!
एक सशक्त एवं मजबूत लोकपाल कि आशा में – गोपेश तिवारी!
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