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जिम्मेदारी किसकी?

मन के मोती
मन के मोती
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किशोर वर्ग दिग्भ्रमित है! उसे संस्कारों की परवाह नहीं है! आधुनिकता की अंधी दौड़ में भारतीय संस्कारों पर आधारित मूल्यों की समझ नहीं है उसे! हम देखते हैं कि सरेराह युवतियों पर फब्तियां कसना , दोस्तों के साथ घूमते हुए सिगरेट और बियर पीना आम बात हो चली है! इस निरंकुश और अनियमित जीवन जीने की इच्छा से अधिसंख्य किशोर ऐसे सपनों वाली दुनिया में जीते हैं , जिसकी वास्तविकता प्रकट होने के बाद उनके पास सिर्फ और सिर्फ पछतावा ही रह जाता है ! जब तक वो अपनी गलतियों को समझते हैं , बहुत देर हो जाती है! वो एक दयनीय दुखों से भरा जीवन जीने को बाध्य हो जाते हैं अथवा उससे भी अधिक भयंकर अपराध की दुनिया में चले आते हैं !
युवावों की इस दशा का जिम्मेदार कौन है? हम उस युवक को ही इसका जिम्मेदार नहीं मान सकते हैं क्यूंकि जब उसका जन्म हुआ था तो वो इन बुराईयों से अनभिज्ञ था, उसके चरित्र विनिर्माण में हुई चुक या फिर कई अन्य कारण हो सकते हैं उसकी इस दशा के लिए! माता- पिता , अभिभावक, समाज एवं मित्र किसी भी व्यक्ति के चरित्र के विकसित होने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं , अतः कहीं न कहीं यही लोग उसकी इस दशा के लिए जिम्मेदार भी हैं!
माता जिस साँचें में बच्चे को ढालती है , वो उसी में ढल जाते हैं! कई युगपुरुषों पर उनकी माँ की ही छाप पड़ी , अतः बच्चों में संस्कारों के बीजारोपण में उसकी महती भूमिका है ! हर माँ का कर्त्तव्य है की वो अपने बच्चों में सद्गुणों का विकास करे और कदम कदम पर उसकी गलतियों के लिए कठोर होकर समझाए या दंड दे , बच्चे बड़ों का आदर कर रहे हैं या नहीं, वो घर से बाहर घूमने कहाँ जाते हैं , किसके साथ जाते हैं , क्या खाते हैं , आदि आदि इन छोटी छोटी बातों पर निगरानी करना चाहिए !और लगभग हर माँ यही करने का प्रयास भी करती है , पर उसे ये सब करने का समय ही नहीं है , इसका कारण है एकल परिवारों की बढ़ोत्तरी ! क्यूंकि संयुक्त परिवार में यदि माँ या पिता बच्चों का ध्यान नहीं दे पाते तो उनकी दादी, दादा, चाचा, चाची और अन्य सदस्य बच्चे का ध्यान रखते हैं ! आज मेरे सामने कई ऐसे बच्चे लफंगों की तरह घुमाते दिखाई देते हैं जिनके माता पिता दोनों ही दिनभर नौकरी करने के लिए घर पर नहीं होते और बच्चा घर पर कुछ भी करने को स्वतंत्र होता है , क्यूंकि उसकी निगरानी के लिए न तो उसके दादा -दादी हैं और न ही कोई और! ऐसे बच्चे जिज्ञासा बस नयी नयी चीजें जानने की उत्सुकता में कब गलत रस्ते पर कदम बाधा देते हैं उन्हें खुद ही नहीं पता चलता है!
हमारे अध्यापक न केवल हमें बौद्धिक एवं पुस्तकीय ज्ञान देते हैं अपितु वो हममें ईमानदारी, सत्य , न्याय , विनम्रता एवं अन्य मानवीय गुणों की स्थापना भी करते हैं , हमें प्राणी से मानव हमारे शिक्षक ही बनाते हैं ! हमें संस्कारों का महत्व एवं समाज तथा संस्कृति की शिक्षा भी देना इन्ही का काम है , पर आज ऐसे शिक्षकों का आभाव सा हो गया है , किताबी ज्ञान तो इनसे मिल जाता है पर व्यावहारिक ज्ञान देने में ये असमर्थ हैं , शिक्षा के बढ़ाते बाजारीकरण एवं प्रतिस्पर्धात्मक बने रहने के लिए व्यर्थ दिखावे में आकर इन मुलभुत बातों से आज के शिक्षक चूक गए हैं जिसकी परिणिति बच्चों में बढ़ते आपराधिक प्रवृति है! आज हर दिन ९से १२ या फिर कालेज लेविल के बच्चों के हत्या , छेड़छाड़ तथा चोरी जैसी घटनावों में संलग्न होने की खबरें अखबारों में छाई रहती हैं!
हमारे मित्र हमारे व्यक्तित्व पर गहरा प्रभाव रखते हैं, हमारी संगति जैसे होगी वैसे ही हमारा व्यक्तित्व होता है! अतः बच्चे कैसे लोगों को अपना मित्र बनाते हैं! इसकी जानकारी रखनी होगी , और अभिभावक को चाहिए की वो बच्चे का सबसे अच्छा मित्र भी बनें जिससे बछा अपनी हर बात आपसे बता सके और गलत लोगों के साथ जाने से बच जाए!
किसी भी समाज एवं राष्ट्र के नव निर्माण में वहां की युवा पीढ़ी आधार होती है , अतः उन्हें उर्जावान बनाये रखना होगा ! उनमे व्याप्त दुर्गुणों को हटकर उसके स्थान पर सद्गुणों का विकास करना समाज के बौद्धिक लोगों की भी जिम्मेदारी है , हमें ऐसे बच्चे जो निरुद्देश्य घूमते मिलें उन्हें एक उद्देश्य और दिशा दें , बच्चों में मानवीय गुणों के विकास हेतु सिविर लगाये जाएँ उन्हें पाश्चात्य संस्कृति के जाल में जाने से बचाएं ! उन्हें जीवन को एक लक्ष्य पे केन्द्रित करने में मदद दें!

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