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क्या वास्तव में यही नव वर्ष है?

मन के मोती
मन के मोती
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आपके और आपके पुरे परिवार एवं इष्ट मित्रों को , नए जोश एवं आशावों का संचार कराते हुए , अतीत के सुखद घटनावों की यद् दिलाते और दुखद घटनावों को विस्मृत करने का अवसर प्रदान करते हुए , सफलतावों की उपलब्धियों को सहेजते हुए एवं असफलतावों से सबक सिखाते हुए नव वर्ष आगमन की मधुर बेला मंगलमय हो ! ये नया वर्ष आपकी खुशियों को और भी अधिक बढ़ाये ! आपकी सोच जाति , वर्ण , धर्म और अन्य सीमित सीमावों से परे विश्व बंधुत्व एवं मनुष्यता की ओर अग्रसर हो!
nav varsh nayi ummiden
इस मधुर बेला की प्रतीक्षा सभी लोग विशेषतः युवा बड़ी , तन्मयता से करते हैं! भारत वर्ष में ३१ दिसंबर की पार्टी का अब आम प्रचलन हो चूका है! उससे भी अधिक इन पार्टियों में मनोरंजन के नाम पर फैली फूहड़ता एवं अश्लीलता सामान्य बात हो चुकी है! कितने ही युवा इस रात कई खौफनाक कृत्यों को अंजाम देते हैं ! वहां पर अर्ध नग्न युवतियां उत्तेजक नृत्य करते हुए किसी भी किशोर पर घातक प्रभाव डाल सकती हैं , ऐसे में इस बात की समीक्षा करनी चाहिए कि क्या ये एक जनवरी को नए वर्ष के प्रारंभ कि संज्ञा देना उचित एवं तर्कसंगत है? क्या ये वास्तव में नए वर्ष के आगमन का संकेत है? क्या इसके नाम पर आयोजित पार्टियों में फैली अश्लीलता का विरोध करने वाले सांप्रदायिक एवं असभ्य हैं?
प्रायः हम किसी भी घटना या वस्तु को नयेपन का संकेत तभी मानते हैं जब वो अपने साथ किसी तरह का परिवर्तन लायें! दिसंबर एवं जनवरी के मौसम में या अन्य किसी भी बात में ऐसा परिवर्तन नहीं दृष्गत होता है जिसके आधार पर हम जनवरी को नए वर्ष का प्रारंभ कहें! ये बात सिर्फ भारत के ही लिए नहीं है ये तो संसार के लगभग सभी देशों के साथ है हर जगह दिसंबर एवं जनवरी के मौसम में कोई विशेष अंतर नहीं होता है! अब यदि हम अन्य प्रमुख धर्मों इस्लाम एवं हिन्दू के विषय में बात करें तो इस्लाम में नव वर्ष का आरंभ इस्लामी हिजरी अमूमन नवम्बर के महीने में पड़ता है तब ठंडियों की शुरुवात हो रही होती है , मतलब की मौसम की परिस्थितियां परिवर्तित हो रही होती हैं अतः उसे नव वर्ष कहना उचित एवं तर्कसंगत है!
हिन्दू धर्म में भी विक्रम संवत के अनुसार चैत्र मास की प्रतिपदा से नए वर्ष का आरंभ माना जाता है , ये वर्ष का वो समय है जब ठंडियाँ ख़त्म हो चुकी होती हैं और ग्रीष्म काल आरंभ होता है , अतः बदलाव का संकेत देती हुई ये तिथि भी नव वर्ष के प्रारंभ से संबोधित की जा सकती है! अतः ये युक्तिसंगत एवं उचित भी है ! किन्तु ईसाई धर्मे के नव वर्ष के परिप्रेक्ष्य में ऐसा कोई भी तर्क नहीं संभव है जिससे की पहली जनवरी को नए वर्ष के प्रारंभ के रूप में प्रतिपादित किया जा सके! फिर भी अधिकांश हिन्दू पहली जनवरी को ही नव वर्ष का प्रारंभ मानते हुए अपने धर्म में नव वर्ष प्रारंभ कब होता है , ये भी नहीं जानते हैं! इस्लाम में तो धार्मिक शिक्षा उनके मौलवियों के द्वारा बच्चों को दे दी जाती है, अतः उन्हें अपने धार्मिक मूल्यों की समझ है पर आज देखने में आता है की यहाँ भी युवा वर्ग इस तथाकथित नव वर्ष के आकर्षण में आ रहा है!
हम अक्सर देखते हैं की जो भी धार्मिक या सामाजिक संगठन नव वर्ष के उल्लास में आयोजित समारोहों में फैली अश्लीलता का विरोध किया जाते है उनके ऊपर समाज के ही कुछ तथाकथित धर्म निरपेक्ष संगठनों के द्वारा सांप्रदायिक करार किया जाता है और उन्हें असभ्य एवं पन्द्रवहीं शताब्दी का पिछड़ा और विकृत मानसिकता का कहा जाता है! मीडिया भी यही दिखाती है की कुछ उन्मादी लोगों ने समारोह मनाती शांतिप्रिय लोगों पर कहर बरपाया और टेलीविजन चैनलों पर बहस छिड़ जाती है की इसके पीछे आर. एस.एस. तथा बी.जे.पी. जैसे सांप्रदायिक ताकतों का हाथ है! पर कोई भी ये देखने को तैयार नहीं है की किस तरह ऐसे समारोह हमारी सामाजिक और सांस्कृतिक ढांचे को ध्वस्त कर रहे हैं , आज अमेरिका सहित सम्पूर्ण पाश्चात्य जगत अवसाद नामक बीमारी से ग्रस्त है जिसका कारन उनकी बढ़ती व्यक्तिवादी प्रवृत्ति एवं उत्छिन्न चारित्रिक गुण ही हैं जो भारत और अन्य देशों में भी फ़ैल रही है अतः हमें बिना राजनीति एवं धार्मिक उन्माद में ग्रस्त हुए इस बीमारी का मिलकर सामना करना है ! ऐसे आयोजनों से किसी को कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए बस विरोध वहां पर फैली अश्लीलता से है !

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