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विधान सभा चुनावों का बिगुल बज चुका है, पान की दुकानों, गलियों चौराहों एवं पार्टी कार्यालयों में राजनीतिक समीकरण बन बिगड़ रहे हैं! ये वो समय होता है जब चुनाव में ज्यादा से ज्यादा वोट अपने पक्ष में करने के लिए कितने ही लोक लुभावने , श्रुति मधुर एवं कल्यानप्रद घोषणाएं करने की राजनीतिक दलों एवं राजनेतावों में होड़ मच जाती है! चुनाव रूपी वैतरिणी को पार करने के लिए आम जनता को ऐसे दिवा स्वप्न दिखाए जाते हैं की पूछिये ही मत! जगह जगह सभाएं कर के कुछ एक माननीय नेता गण तो सौ सौ के नोट भी बांटते हैं , कभी कभी सायकिल बांटी जाती है तो कभी किताबों का विमोचन कराया जाता है जिसमें सत्तापक्ष अपनी उपलब्धियों का बढ़ चढ़ कर प्रचार करते हैं , तो विपक्ष भी पीछे नहीं रहता है वो भी पुस्तकों एवं पत्रों के माध्यम से सत्ता पक्ष के कार्यकाल में हुए तमाम असंगत कामों की याद जनता को दिलाते हैं यद्यपि उनकी अपनी सरकारें कहीं से भी इन असंगत कार्यों में पीछे न हों!
सड़कें विविध झंडे और झंडियों , बैनरों, पोस्टरों से पट जाती हैं , हर जगह बस एक ही शोर, एक ही उद्योग की कैसे लोगों का दिल बहला कर उनसे वोट मांग लिया जाए! कैसे दूसरी पार्टी के पुरे इतिहास को खंगाल के उनके द्वारा हुए भ्रष्टाचार की बात कर जनता का मोह उनसे भंग करें या फिर किसी पार्टी के कार्यकाल में हुए दंगा फसादों की बात उठा कर लोगों के धार्मिक भावनावों को भड़का कर उनके वोट को कम किया जाए! और अपनी जनता जनार्दन है कि भले ही भूखे पेट सो जाएँ , भले बच्चे निर्वस्त्र रहें , भले ही उनकी शिक्षा का प्रबंध न हो पाए , भले ही उनके नव युवकों को रोजगार न मिले पर वो ऐसे किसी भी प्रत्याशी को वोट नहीं देंगे जो उनकी जाती अथवा उनके धर्म का न हो ! आप कोई भी अच्छा काम करें उसका प्रचार नहीं होगा पर आपने किसी भी तरह उन्हें उनके धर्म की बातें आक्रामक ढंग से बता दें आपका प्रचार हो जाएगा!
इन सबके बीच चुनाव आयोग का काम है की वो निष्पक्ष चुनावों का संपादन कराये , वो ध्यान दे की किस तरह राजनीति में अपराध का सम्मिश्रण कम से कम हो! कोई भी उम्मीदवार नोट देके या किसी भी अन्य अनैतिक तरीके से लोगों का मत अपने पक्ष में न कर सके ! राजनीतिक प्रचार में हुए व्यय पर भी नियंत्रण उसी की जिम्मेदारी है ! और सम्प्रति आयोग अपने इस काम को बहुत ही जिम्मेदारी से निभा भी रहा है!
चुनाव आयोग ने खर्चों पर नियंत्रण के लिए ही सभी उम्मीदवारों से अलग बैंक खाता खोलने को कहा है जिसमे उनके चुनावी खर्च के सारे ब्यौरे दर्ज रहे! रेडियो टेलीविजन एवं अन्य माध्यमों से चुनाव चिन्ह से सम्बंधित गानों पर रोक लगा दी गयी है !
इसी कड़ी में चुनाव आयोग द्वारा उठाया गया एक कदम बहुत अधिक चर्चा में रहा! चुनाव आयोग ने मायावती के द्वारा निर्मित कराये गए पार्कों में स्थापित हाथियों की मूर्तियों को ढकवा देने का आदेश किया है क्यूंकि उसे लगता है की हाथी की ये मूर्तियाँ चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं! उल्लेखनीय है कि हाथी बहुजन समाज पार्टी का चुनाव चिन्ह है! और मुझे लगता है कि खुले हाथी को देखकर भले ही कोई वोट न देता बसपा को, पर ढके हाथी जरुर कुछ लोगों को बसपा को वोट देने के लिए प्रेरित करेगा!
इस निर्णय ने ना केवल बसपा का प्रचार किया है अपितु दलितों को उद्वेलित भी किया है , उनमें बसपा के लिए सहानुभूति कि भावना भर गयी है! और देखा जाए तो हमें इस निर्णय का कोई औचित्य नहीं है , और हमें लगता है कि ढके हाथी बसपा के लिए अधिक लाभकारी सौदा होगा ! पर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता है कि मायावती के कई विधायक और मंत्री गन कई गंभीर आरोपों में फंसे हैं! और उतना ये भी तथ्य है कि जहाँ कांग्रेस और बी.जे.पी ने अपने अपने लोगों के खिलाफ बहुत अधिक दबाव बढ़ने पर ही कार्यवाही कि पर बसपा ने आरोप लगते ही सभी विधायकों एवं मंत्रियों से न केवल इस्तीफा लिया अपितु उन्हें पार्टी से बहार का रास्ता भी दिखाया!
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