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वो लड़का

मन के मोती
मन के मोती
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सर्दियों की शाम ! घने कोहरे का लिबास ओढ़े सूनी सड़क ! जुगुनुवों की तरह चमकती स्ट्रीट लाइटें ! ठण्ड से बचते हुए घर लौटते बच्चों के झुण्ड से आती हुई अस्पष्ट आवाजें ! इन सबको देखता हुआ , अपनी ही धुन में मस्त वो चहलकदमी करता हुआ चला जा रहा है ! उसकी आँखों में प्रकृति के हर रूप , हर कठिनाई से पार पाने के आत्मविश्वास की चमक दिखती है ! वह कुछ मुस्कुराते हुए सोचता है -” देखो इन बच्चों को कितने प्रसन्न चित्त दिखते हैं ! जिंदगी के हर उहापोह से निश्चिन्त हैं ! किन्तु आने वाले कुछ वर्षों में इन्हे भी जिंदगी की वास्तविकता का पता चलेगा ! तब ये आनंद और प्रसन्नता खो जायेगी !”
तभी उसे सड़क पर पड़े दो अधेड़ दिखे , जो शायद रिक्शा चालक हों , ठण्ड से खुद को बचाने के लिए बोरा लपेटे हुए ! उसकी अंतरात्मा कराह उठी ये देख कर !
” हे भगवान् ! ये गरीबी कितना क्रूर मजाक है ? इतनी विषमता क्यूँ है ? सरकारें इन गरीबों के लिए कोई योजना क्यूँ नही चलाती हैं ? क्या इनके लिए हम कुछ नही कर सकते हैं ? निश्चित रूप से मुझे तो कुछ करना ही होगा इनके लिए ! एक संगठन खड़ा करना ही होगा , जो कि ऐसे लोगों के लिए कुछ कर सके ! मै जोडूंगा अपने अच्छे मित्रों को इस संगठन से ! हम सब मिलकर उस संगठन की सहायता से समाज के वंचित वर्ग की कठिनाईयों को कम करने का प्रयत्न करेंगे ! ”
ऐसा विचार करते हुए उसकी आँखों की चमक एकदम बढ़ गयी ! वो कुछ अद्भुत और क्रांतिकारी विचारों से रोमांचित हो गया ! एक अजीब प्रसन्नता थी उसके चेहरे पर ! वो ऐसा सोच के आगे बढ़ता रहा ! तभी उस सन्नाटे के माहौल को असंतुलित करते हुए मोबाईल की घंटी बजी ! लड़के के चाचा जी का फोन था !
“कहाँ हो तुम ? सब्जी लाने में क्या चार घंटे लगते हैं ? ”
” अरे नही , चाचा जी , बस मै पंद्रह मिनट में आ रहा हूँ !”
ऐसा कह्ते ही उसके कदम रुक गये ! सारी प्रसन्नता , सारा आत्मविश्वास , सारी चमक सब कुछ अचानक ही खो गया ! वो लड़का धीरे धीरे उस घने कोहरे में कहीं खो गया !

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