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आखिर क्यों

मन के मोती
मन के मोती
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अगर हम भारतीय संदर्भ में बात करें तो मनुष्य की सारी मानवता , उदारता , बंधुत्व की भावना एवं भारत की समन्वयवादी संस्कृति एक झटके में खत्म हो जाती है जब सम्प्रदाय की बात आती है ! व्यक्तिगत स्तर पर हमारे घनिष्ठतम मित्रो में हिन्दू मुस्लिम सभी सम्प्रदाय के लोग बिना किसी भेद के होते हैं उसका बिम्ब सामाजिक स्तर पर क्यूँ नही दिखता है , एक बेहतर भारत के निर्माण के लिए सबका साथ अनिवार्य है ! संवेदनशील मुद्दों पर अपनी असंगतता को दंगो में नही बदलना चाहिए सहभागी सम्बन्धों की जरूरत है ! अतः हमारा सभी मित्रों से एक निवेदन है की राजनीती में सम्प्रदाय को मुद्दा न बनाया जाए ! इसमें कोई भी अपवाद नही है न भाजपा , न कांग्रेस और न ही कोई अन्य दल क्यूंकि सम्प्रदाय की बात आते ही हम भूल जाते हैं की हम इन्सान हैं !

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