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भारतीय राजनीती : विकास एवं धार्मिक-सहिष्णुता (जागरण -जंक्शन फोरम )

मन के मोती
मन के मोती
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२६ मई २०१४ का दिन भारतीय लोकतंत्र के लिए ऐतिहासिक था , जब भारतीय जनता ने एक सामान्य पृष्ठिभूमि के व्यक्ति के हाथ में एक नयी उर्जा एवं आशावों के साथ देश की सत्ता सौंपी थी ! ये हमारे देश में लोकतंत्र की मजबूती का प्रमाण है ! आज उस दिन से लगभग डेढ़ वर्ष हो चुके हैं , और यदि उनके काम -काज पर मूल्यांकन किया जाए तो वास्तविकता के धरातल पर जन – अपेक्षावों की कसौटी पर थोडा पीछे दिख रहे हैं किन्तु उन्होंने पूरी तरह से निराश भी नहीं किया ! विकास का जो सपना उन्होंने दिखाया था उसकी पूर्ति के लिए उनके प्रयासों में कोई कमी नहीं है और वो धीमे किन्तु मजबूत तरीके से उसी ओर अग्रसर हैं ! प्रधानमंत्री जन -धन योजना , बीमा -योजनायें , मेक इन इंडिया , प्रधानमंत्री मुद्रा योजना एवं कौशल -विकास की विभिन्न योजनायें भविष्य के भारत को एक बुनियाद देगा जहाँ हम विकास की ऊंची ईमारत खड़ी कर सकें और ये बात सबको पता है की भवन -निर्माण में नीव ही सबसे महत्वपूर्ण और समय लेने वाला होता है ! इन सबका परिणाम आने वाले दिनों में अवश्य दिखेगा !

(नोट -भाजपा एवं विविध राजनैतिक पार्टियाँ जो बहुसंख्यक हितो की चिंता उठाती हैं राजनैतिक रूप से उन पर दक्षिणपंथी एवं सांप्रदायिक होने का ठप्पा लगा दिया गया है और मेरे अनुसार सम्प्रदायिकता एवं धर्म-निरपेक्षता  की परिभाषा क्या है इस पर एक व्यापक बहस होनी चाहिए आज किसी विशेष धर्म का समर्थन साम्प्रदायिकता का प्रतीक है और उसी धर्म का विरोधधर्म निरपेक्षता का और ये दोनों ही अतार्किक  परिभाषाएं हैं ) पहले वर्ग का प्रतिनिधित्व भारतीय जनता पार्टी करती है जिसको पूर्ण बहुमत में पहली बार सत्ता मिली है ! स्पष्ट है की ये बात दूसरी विचाराधारावों की पार्टियों को आसानी से स्वीकार्य नहीं होगा !वो हर घटना , हर सरकारी फैसलों की समीक्षा उसी चश्मे से करेंगे और ऐसा करना अनुचित भी नहीं है ! इस समय कुछ ऐसी बाते हुई भी हैं जिससे विपक्षी दलों को ये अवधारणा प्रसारित करने में सहायता मिली है कि वर्तमान सरकार धार्मिक -असहिष्णुता को बल देने वाले तत्वों को प्रश्रय दे रही है ! बौद्धिक वर्ग भी इन दो विचारधारा में बंटा है उनकी भी अपनी राजनैतिक निष्ठा होती है , उसी के अनुसार कुछ लोगों ने साहित्यिक पुरस्कारों को वापस करने का तरीका अपनी राजनैतिक विरोध को प्रकट करने के लिए प्रयुक्त किया तथा जिस तरह से सामूहिक रूप से ऐसा किया गया उससे अब कोई भी साहित्यिक संस्था या लेखक या बौद्धिक व्यक्ति ये नहीं कह सकता की वो राजनैतिक रूप से तटस्थ है क्यूंकि जब यही बौद्धिक वर्ग कांग्रेस के समय के सिक्ख नरसंहार , कश्मीरी -पंडितों के सामूहिक नरसंहार , भागलपुर दंगों के समय और इंदिरा जी द्वारा घोषित आपात-काल के समय चुप था और भारतीय जनता पार्टी के समय एक दो हत्यावो (वो भी किसी एक वर्ग विशेष के लोगों की जो की दुर्भाग्यपूर्ण है किन्तु उनकी हत्या की जिम्मेदारी राज्य सरकारों की है दूसरा इन बौद्धिक वर्ग के लोगों को प्रशांत पुजारी जैसे लोगों की हत्या से कोई आपत्ति नहीं है)और नेतावों के बयानों के आधार पर ऐसा कदम उठा रहे हैं तो ये राजनैतिक कदम है ! और ये घोर दुर्भाग्य है कि कुछ मीडिया के प्रतिनिधि भी इस तरह के राजनैतिक निष्ठा के तहत उठाये क़दमों को प्रायोजित एवं समर्थित करते हैं मीडिया भी सिर्फ एक वर्ग विशेष के लोगों के मानवीय अधिकारों का समर्थन करती है , मीडिया भी ये प्रदर्शित करने में लगी है कि देश में धार्मिक -असिहष्णुता बहुत बढ़ गयी है इतनी कि अल्पसंख्यक समुदाय साँस भी नही ले सकता है , लोकतंत्र के चतुर्थ स्तम्भ का ये व्यवहार अनुचित है ! मीडिया को भी अपनी विचारधारा में परिवर्तन करने में कुछ समय लगेगा ! ये भी पुष्ट हो जाता है की विरोधी विचारधारा वाले लोगो के पास एवं सरकार की स्वाभाविक समीक्षक मिडिया के पास इन बातो के अतिरिक्त सरकार के विरुद्ध अन्य मुद्दों का अभाव है !

ये दुर्भाग्यपूर्ण है कि धर्म एवं जातिगत विभेद भारतीय राजनीती को अनावश्यक रूप से प्रभावित करते हैं आज भी विकास की बात करने वालो को भारतीय राजनीती में महत्व नही मिलता ! आज मीडिया एक दोष -सिद्ध अपराधी की जातीय एवं साम्प्रदायिक बातों को अधिक महत्व दे रही है , मीडिया के प्रतिनिधि बजाये घोषणापत्र में की गयी बातो को नहीं पूछते वो आप से ये पूछते हैं कि अमुक दल ने अमुक जाती एवं अमुक धर्म के कितने लोगों को टिकट दिया ! देश के हित में केंद्र सरकार ने कौन सी योजनाये बनाई हैं उनके विभिन्न सकारात्मक और नकारात्मक पक्ष क्या हैं ,, मीडिया में कभी ये बहस का मुद्दा नहीं बना और न ही बनेगा ! यहाँ सिर्फ मांस प्रतिबंध , एक सेलिब्रिटी की हत्या की जाँच , और देश के गलत छवि को प्रसारित करने में सहायक तथ्यों को तोड़ मरोड़ के प्रस्तुत करने की होड़ मचती है ! यहाँ किसी अयोग्य राजनेता जो सिर्फ एक विशिष्ट वंश से सम्बद्ध होने की वजह से चर्चित है उसके अनावश्यक एवं फूहड़  बयानों पर जो विरोधी के पहनावे और कपड़ों के रंग पर आधारित होते हैं ये दुर्भाग्यपूर्ण ही है ! एक विशिष्ट धर्म के धार्मिक परम्परा से वातावरण के प्रदूषित होने का खतरा सुर्खी बटोर लेता है जबकि दुसरे धर्म की परम्परावों को धार्मिक अधिकार बता के मौन साध लिया जाता है !

अब समय आ गया है की धर्म एवं जाति आधारित राजनीती विकासपरक होवे ऐसे व्यक्ति , राजनेता एवं राजनैतिक दलों को निरुत्साहित किया जाये जिनका राजनैतिक अस्तित्व सिर्फ धर्म और जाति पर आधारित है चर्चाएँ इस बात की हो की अमुक दल ने कौन से वादे पूर्ण किये और कौन से नहीं ! सरकारों को देश के विकास से अस्थिर करने वाले घटनावो को बेवजह तूल न दिया जाए ! विविध सार्वजानिक मंचों एवं मीडिया फोरमों में ऐसी तत्वों कलो प्रोत्साहित न किया जाए जो अंतर्राष्ट्रीय रूप से देश के पक्ष को कमजोर करें ! बौद्धिक वर्ग के लोग भी साहित्य एवं भारतीय जनमानस के प्रति अपनी जिम्मेदारी को समझें और अनावश्यक रूप से कोई टिपण्णी करने से बचे ! अभी खबर आ रही है की लेखको के अंतर्राष्ट्रीय मंच ने भी पुरस्कार लौटने वाले लेखको का समर्थन किया है , क्या ये पुरस्कार वापस करने वालों को खुश करने वाली बात है की भारत की छवि अंतररष्ट्रीय रूप से नीचे गिरी !

अशिक्षा सर्वप्रमुख कारन है कि देश की राजनीती धर्म एवं जाति से निर्धारित एवं नियंत्रित हो रही है , अतः राजनैतिक एजेंडा विकास पर  केन्द्रित हो इसके लिए भारत -सरकार को शत प्रतिशत साक्षरता दर की ओर ध्यान देना चाहिए ! नीतियों का निर्धारण समाज के सबसे पीछे खड़े लोगों को ध्यान में रख कर किया जाना चाहिए ! ये वही तबका है जिसके विकास से देश का विकास होगा ! जिसके विकास से भारतीयता की पहचान होगी ! हम भविष्य में भारत के वैश्वुक नेत्रित्व में अपार संभावनाए व्यक्त करते हैं !

जय हिन्द , जय भारत !

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