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नीरव-मन भाग -१

मन के मोती
मन के मोती
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सिगरेट के कश लगाते हुए उस लडके को सबने बेपरवाह ,आवारा ,बदतमीज और हंसमिज़ाज ही समझा ! कुछ एक लोगो के लिए वो पत्थर दिल तो कुछ के लिए अच्छा दोस्त भी !
लेकिन इस सबसे परे उसके अंतर्मन की वेदना ,उसके अकेलेपन को भी किसी ने देखा क्या? वो सब जो उसके आस -पास हैं ,अपने ही लिए तो हैं क्या कोई ऐसा भी है जो उसका हो ? उसके लिए हो ?
शायद वो भी यही सोच रहा है सिगरेट के धुएं के गोल -गोल छल्ले उड़ाता हुआ !


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उसके मन में अजीब सी उलझने हैं ! अचानक से वो खुद को अकेला पाने लगी है , कुछ अधूरा सा लगने लगा है ! ऐसा कब से हुआ है ,ठीक- ठीक उसे भी नहीं पता है पर हाँ अहसास अब हुआ है !
यही सोच रही थी कि उसे वही दिखा , वही झुण्ड ,, वही आवारा लड़के ! वही हंसी -ठठेलियां !
खैर उसे कालेज के लिए देर हो रही है

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उसके मन में बहुत ऊँचे ख्वाब हैं जिन्हें पूरा करने के लिए एक से बढ़कर एक योजनायें (प्लान ) भी ! वो अधिकाधिक लोगों को प्रेरित भी कर सकता है अपनी वाणी से ! लेकिन जो कमी है , वो है उसकी निष्क्रियता ! मार्गदर्शन अथवा साधनों की कमी नहीं है !
उसके लिए लोगों की अपेक्षित प्रतिक्रियाएं (जो शायद कभी भविष्य में सुनने को न मिलें ) ही सबसे बड़ी बाधा है किसी भी योजना पर आगे बढ़ने के लिए !
हर समय वो उसी कल्पना में सपनो को देखता है , योजनावों को बनाता है ,, और उन पर आगे बढ़ने से पहले लोगों की प्रतिक्रियावों के विषय में सोचकर निष्क्रिय रहता है ! ये उसकी नियति है !
आज का दिन भी इसी कल्पना में बीत चुका है और ऐसे ही न जाने कितने दिन !



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