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मुक्ति भाव‬

मन के मोती
मन के मोती
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एक स्थान जहाँ से देख सको ,
सागर की लहरों को जो टकराती हैं अपने तटों से उसके विनाश का इरादा लेकर ,
लेकिन अंत में मान लेती हैं हार !
एक ट्रेन जो चलती है
अनंत पथ पर बिना रुके जापान से भारत -पाक होते हुए सभी देशों की यात्रा पर
फिर भी न आये हमारा गंतव्य !
एक इन्सान जो करे आपसे नफरत ,
हर मानवीय सीमावों के परे जाकर , जिसके अस्तित्व का ही आधार हो आप
फिर भी कर सकूँ उसका सामना !
वो भूख से रोते बच्चे
जिनका न हो कोई अपना , पर तुम देखते रहो उनको रोते हुए ! जिन्हें
देखते ही पत्थर -दिल पिघल जाये !
वो उचाईयां,
जहाँ से गिरते रहो अनंत गहराईयों में, पर न मिले आधार जिसकी प्रतिक्रिया
हो कष्टदायी !
हमे ऐसी मुक्ति नही , बंधन चाहिए !

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