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भारत का संविधान सन १९५० में लागू किया गया जो उस समय की हमारी सामूहिक संघर्ष का जय घोष था सम्पूर्ण विश्व के सामने ! उसमे सर्व धर्म समभाव , समावेशी विकास और सत्ता के विकेंद्रीकरण से लेकर जातिवाद और आपराधिक प्रवृत्तियों पर लगाम लगाने तक वो तमाम बातें की गयी जो एक राष्ट्र के रूप में हमे विश्व के संपन्न देशों से कदमताल करते हुए देखने की हमारे सपने को वास्तविकता के धरातल पर लाने के लिए जरुरी आधार दें ! जरा सोचिये हमारे संविधान निर्मातावों के उस ऊर्जा एवं जोश को और उस विश्वास को ! अवश्य ही वो भविष्य को लेकर सशंकित भी हुए होंगे विभाजन की त्रासदी को देखकर लेकिन फिर भी उन्होंने हमें ऐसा संविधान दिया जिससे हम उन संकीर्ण भावनावों से परे रह एक राष्ट्र के रूप में उन्नति कर सकें ! और हम जरा भी विचलित नही होते ये देख कर कि जिस उज्जवल भविष्य की कामना ने हमारे पूर्वजों को अपना सर्वस्व उत्सर्ग करने को प्रेरित किया वही भविष्य आज राष्ट्रवाद और देशद्रोह पर बहस कर रहा है ! हमारे शैक्षिक संस्थान आज वैचारिक स्वतंत्रता के नाम पर राजनैतिक अखाड़े में बदल रहे हैं ! हमारे शिक्षक छात्रों को समाज में व्याप्त असमानता , अशिक्षा और गरीबी तथा भ्रष्टाचार के सही कारणों पर ध्यान दे उसे दूर करने की कोई व्यावहारिक योजना ढूढने की बजाय मनुवाद , ब्राह्मणवाद जैसे मिथ्या शब्द गढ़ रहे हैं !
आज जे एन यू एक ऐसे ही राजनैतिक अखाड़े में बदल गया है , वहां पर अफजल गुरु की शहादत दिवस पर कार्यक्रम रखा जाता है वो भी संस्कृति के लिबास में लपेट कर ! क्या कोई बताएगा की तथाकथित रूप से अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के पैरेकारों को संस्कृति शब्द के ढाल की जरुरत क्यूँ पड़ी? उनमे ये आजादी और जोश तथा साहस है तो क्यूँ नही उस कार्यक्रम को अफजल -गुरु -शहादत दिवस के रुप में मनाये जाने की अनुमति मांगी गयी ? वहां अफजल गुरु के पक्ष में और भारत के विरोध में नारे लगते हैं ! पोस्टर बांटे जाते हैं अफजल के समर्थन में और कश्मीर तथा देश के अन्य क्षेत्रों से छात्रों को आमंत्रित किया जाता है ! और जब किसी तरह से ये बात यूनिवर्सिटी कैम्पस से बाहर आती है और कानून अपना काम करता है तो आ जाते हैं राजनैतिक और मीडिया के दलाल अपने धंधे को चमकाने ! वो सरे आम उन छात्रों को निर्दोष बता देते हैं जैसे वो खुद न्यायाधीश हों लेकिन जब विपक्ष में कोई वर्ग उस तथाकथित निर्दोष को जोश में या किसी निहित स्वार्थ -भावना से मारता है तो इन राजनैतिक और मीडिया के दलालों को कानून और संविधान की याद आ जाती है ! फिर दिखाया जाता है अमुक छात्र की आर्थिक स्थिति , और जाति को ! एक दो वीडियो को गलत सिद्ध कर उसे निर्दोष बताया जाता है और जब न्यायलय उस छात्र को कुछ शर्तों के साथ अनंतिम जमानत देती है तो उसे व्यस्था के जुल्म के शिकार के रूप में दिखा सहानुभूति तत्पश्चात उसे विजयी घोषित कर एक नायक के रूप में स्थापित कर दिया जाता है ! इन महाशय जी को आजादी का मसीहा बना दिया जाता है ! आजादी भी किससे -ब्राह्मणवाद , मनुवाद , सामंतवाद और जातिवाद से !अब इनसे पूछा जाए की आपने भाषण तो बड़ा ही ओजस्वी दिया लेकिन क्या आप बताएँगे की ब्राह्मणवाद या ये मनुवाद या फिर सामंतवाद है क्या ? और आप इन समस्यावों को दूर कैसे करेंगे तो शायद ही आपको कोई ठीक ठीक उत्तर मिल सके ! जो भीड़ बड़े जोश के साथ आजादी आजादी के नारे लगा रही थी उनमे से कोई भी मनुवाद को परिभाषित नहीं कर सकता है , लेकिन सब लडाई लड़ने को तैयार हैं ! हद तब पार हो जाती है जब इन सब समस्यावों का कारन किसी एक व्यक्ति और संगठन पर लगा दिया जाए ! और इससे इनके सारे संघर्षों , आजादी के नारों की पोल स्वतः खुल जाती है !
कुछ पत्रकार जो वास्तव में बहुत वरिष्ठ एवं सम्मानीय भी हैं , वैचारिक द्वन्द्वों को शायद व्यक्तिगत लेकर बैठ गये हैं , उनके अनुसार जिस एक व्यक्ति को वो नापसंद करते हैं और जिसे भले ही देश की अधिसंख्य लोगों ने चुना है उसे सत्ता में रहने का अधिकार ही नही ! वो तरह तरह के आंकड़े लेकर आते हैं अपनी बात को सिद्ध करने के लिए , एक पत्र -व्यवहार के आधार पर एक मंत्री पर राजनैतिक दबाव लगाने का आरोप मढ़ उससे स्तीफे की मांग करते हैं लेकिन जब एक राजनेता उन छात्रों के बीच जाकर राजनैतिक भासन देता है , न्यायलय के अभियुक्त को जिस पर राष्ट्रद्रोह जैसा संगीन आरोप हो न्यायलय के आदेश से पहले ही निर्दोष बता न्याय से अविश्वास दिखाए , उस पर इनके मुंह से दो शब्द भी नही निकलते ! और फिर भी ये अलापते हैं कि सरकार ने इनकी आवाज का दमन किया है ! पत्रकारिता में हैं तो आपके ऊपर भविष्य की बेहतरी के साथ साथ जिम्मेदारी भी होती है इस बात का ध्यान रखना चाहिए इन्हें ! आजादी चाहिए आपको भी ऐसे व्यक्तिगत द्वेष -भाव से !
अंत में मै यही कहना ठीक है की आजादी जरुरी है , किसी विशिष्ट विचारधारा के अंधानुसरण से , किसी व्यक्तिगत द्वेष से , हिंसा से , भ्रष्टाचार से , जातिवाद से और हर उन बुराइयों से जिससे समाज पीछे जा रहा है ! लेकिन उसके लिए जमीनी संघर्ष की जरुरत है , सामाजिक चेतना को जगाने की जरुरत है महज भासनों से नहीं आती है ये आजादी इसके लिए बलिदान चाहिए होता है व्यक्तिगत स्वार्थों का ! एक और बात सोचियेगा की जातिवाद और ब्रहामंवाद से लडाई एक साथ संभव है क्या ? और हाँ एक बात और मोदी और ईरानी जिसे आप अपनी लडाई का मुख्या खलनायक समझते हैं उनकी क्या जाति है ?
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