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बिग बैंग सिद्धांत : कुछ सवाल

मन के मोती
मन के मोती
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वैज्ञानिकों  के अनुसार महाविस्फोट जैसी किसी घटना से ब्रह्माण्ड , समय और भौतिकी के नियमों और आकाश का भी आरंभ हुआ है ,लगभग सभी धर्म के धर्माचार्यों पादरियों और मौलवियों ने अपने अपने धर्मग्रन्थों में महाविस्फोट जैसी किसी अवधारणा की सम्भावना को मान्यता दे दी खुद को वैज्ञानिक मानसकिता वाला दिखाने के लिए ! हमारे हिन्दू धर्म के कुछ आचार्यों ने भी वेदों और पुराणों के विविध प्रसंगों के माध्यम से इस सिद्धांत को स्वीकृति दी है ,, लेकिन यहाँ एक बहुत बड़ा अंतर है ,,, बिग-बैंग सिद्धांत और हिन्दू ग्रन्थों में प्रमुख अंतर है की वैज्ञानिको के अनुसार यह घटना बस एक बार हुइ है ,,इसके पहले न कभी हुई था न ही इसके आगे कभी होगी जबकि हिन्दू धर्म के अनुसार ये बार बार होने वाली घटना है ,,दूसरा आकाश को अनंत और हमेशा से अस्तित्व में माना गया है हिन्दू ग्रन्थों के अनुसार लेकिन वैज्ञानिक आकाश का भी आरंभ बिग-बैंग से ही मानते हैं !

अब कुछ यक्ष प्रश्न हैं – १. समय क्या सिर्फ परिवर्तन से ही निश्चित किया जायेगा ?
२. अगर भौतिक नियम ब्रह्माण्ड के उत्पत्ति के साथ अस्तित्व में आये तो वे वैसे ही थे शुरुवात में भी जैसे आज हैं या उनमे भी जैव-विकाश के सदृश उत्तरोतर परिवर्तन हुए !
३.अगर ब्रह्माण्ड भौतिक नियमों के अधीन है और आकाश भी ब्रह्माण्ड के साथ उत्पन्न हुआ तो उसका प्रसार कहाँ हो रहा है ?
४. अगर एक नियम के अनुसार ही सबकुछ आबद्ध है तो सारे पिंडों में समरूपता क्यूँ नही है ? हर जगह जीवन क्यूँ नही है ? हम सब एक जैसे क्यूँ नही हैं ?
मै व्यक्तिगत रूप से इस सिद्धांत में विश्वास नही रखता हाँ महाविस्फोट की अवधारणा ठीक लगती है पर ब्रह्माण्ड के महाविस्फोट के समय एक-परमाणुवीय होने में संदेह है ! हाँ अगर कोई ये कहे की ऐसे अनेक महाविस्फोट अलग अलग समय और स्थान पर एक साथ या कुछ नियमित या अनियमित अन्तराल पर हुए होंगे तो कुछ बात समझ में आती है !
ब्रह्माण्ड एक बार में जैसा है वैसे ही नही आ गया होगा ,,वो अनेकानेक ऐसे छोटे मोटे विस्फोटों की श्रृंखला के बाद अपने स्वरुप में आया या यूँ कहिये वो अब भी अपने को सहेज रहा है ! समय का आरंभ या अंत नही होता है वो अनंत काल से है और अनंत काल तक रहेगा ! आकाश की भी यही कहानी है !
समय को सिर्फ परिवर्तन से नही जोड़ा जा सकता है क्यूंकि ये सारा तंत्र अपरिवर्तनीय है ,,, अगर ब्रह्माण्ड फ़ैल रहा है लगातार तो द्रव्य और उर्जा दोनों ही बढ़ रहे हैं तो या तो द्रव्य और उर्जा से परे कोई एक तीसरा कारक भी है जहाँ से ये दोनों बढ़ रहे हैं अथवा समग्र रूप से इन दोनों का बीजगणितीय योग अपरिवर्तनीय है ! ऐसा तभी संभव होगा जब ब्रह्माण्ड तो फ़ैल रहा हो पर आकाश स्थिर हो ! और द्रव्य उर्जा परस्पर एक दूसरे में बदल रहे हों अब या तो सारा आकाश द्रव्यमय होकर क्षीण हो जाए या समस्त द्रव्य आकाश में बदल जाए !
कुछ लोग इसे कल्पना कहेंगे हो सकता है तो बिग बैंग सिद्धांत के प्रतिपादन करने वाले भी हुआ होगा जैसे शब्दों को प्रयोग में लाते हैं नाकि हुआ था या हुआ है का !

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