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कश्मीर और आतंकवाद

मन के मोती
मन के मोती
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कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा है ! कश्मीर का अपना अलग संविधान है जिसकी वजह धारा ३७० को माना जाता है ! भारत की फौजें वहाँ मानवाधिकारों का हनन करती हैं इसी से भारत के अत्याचार से कश्मीर की स्वतंत्रता के लिए कई संगठन मांग करते हैं जिन्हें अलगाववादी विचारधारा का कहा जाता है ! वहाँ आतंकी स्थानीय नागरिकों की मदद से आये दिन हिंसा करते रहते हैं वहाँ की अधिसंख्य जनसँख्या आतंकियों को अपना आदर्श मानती है जिनका समर्थन भारत के कई तथाकथित सूडो सेक्युलर विचारधारा के लोग करते हैं ! यहाँ AFSPA जैसा कड़ा कानून लगा हुआ जिसकी आड़ में आये दिन सेना मासूम नागरिकों का दमन करती है , इसी से कुछ लोग इसके खिलाफ भी आवाज उठाते हैं ! कुछ लोग जनमत संग्रह की मांग करते हैं ! इन सब तथ्यों को छोड़कर आप क्या जानते हैं कश्मीर के बारे में ?
क्या कभी किसी भी तथाकथित सेक्युलर विचारधारा के लोगों ने सुझाव दिया कि अगर आप सैनिक हैं और आपके सामने आधुनिकतम हथियार से लैस आतंकी आपको मारने को उद्यत है तो उस सैनिक के पास सिवाए उसके दमन के क्या विकल्प हैं ? किसी भी प्रखर राष्ट्रवादी व्यक्ति ने बताया की afspa की आड़ में अगर कोई सैनिक घर की महिलावों के साथ या किसी भी के साथ दुर्व्यवहार करे तो उस पीड़ित व्यक्ति के पास क्या विकल्प है ? क्या आप दोनों ही संभावनावों को एक सिरे से खारिज कर सकते हैं शायद नही ! तो इन कड़े कानूनों को हटाने की वकालत करने वाले देश द्रोही हो गये ? कैसे? दहेज़ अधिनियम और महिला की संरक्षा के लिए कई कड़े कानून हैं , और कई संगठन इनके दुष्प्रयोग के चलते इनका विरोध करते हैं तो क्या वो देशद्रोही हो गये ? नही न ! और इन विरोधों के चलते इन कानूनों को हटा देना क्या सही होगा ? कानून नही बुरे हाँ उनका दुष्प्रयोग होगा तो हमें उनके दुष्प्रयोग को रोकना है ! ऐसा नही है की सेना ने कभी मानवाधिकारो का हनन नही किया होगा , लेकिन इसके लिए पूरी सेना को बदनाम करना आलोच्य है , कभी कभी ऐसा होने पर भारत की केंद्र सरकार जाँच दल भेज कर उसकी रिपोर्ट के आधार पर कर्तव्यों की इतिश्री कर लेती हैं , क्यूँ न वहाँ के लिए मानवाधिकारों के हनन की मामलों की जाँच के लिए एक गैर संवैधानिक और स्थायी तंत्र की स्थापना हो !
अब बात करते हैं बुरहान , अफजल गुरु और याकूब मेनन के समर्थकों की ! इनके समर्थन में जिस तरह से इतनी बड़ी मात्रा में आवाजें उठती हैं , वो गंभीर विषय है , ऐसे लोग भारत तंत्र के खिलाफ हैं किन्तु ये भारत सरकार और वहाँ की राज्य सरकारों के लिए एक कूटनीतिक असफलता भी है ! हम आतंकी के समर्थकों का विरोध कर सकते हैं , एक क्षेत्र विशेष के लोगों और एक समुदाय विशेष के लोगों को कोस सकते हैं पर क्या कभी इसके मूल कारणों पर विचार करते हैं ? आखिर क्यूँ एक क्षेत्र विशेष के अधिकांश लोग ऐसी कुत्सित विचारधारा का समर्थन करते हैं क्या सरकारी तंत्र के लिए ये कूटनीतिक हार नही ? इस अभिधारणा को बल देना की ऐसा करने वाले या एक क्षेत्र विशेष के सारे लोग आतंकवादी हैं गलत है ! सेक्युलर लोग कहते हैं कि ये आतंकवादी गरीबी अशिक्षा या मूलभूत सुविधावों के आभाव की वजह से पथभ्रष्ट हैं तो इनके मानवीय पक्ष को देखते हुए इन्हें और सुविधाएँ प्रदान की जाए , कश्मीर घाटी के लोगों को मुख्यधारा में लाने के लिए लाने के प्रयास किये जाएँ जिनसे असहमत नही हुआ जा सकता लेकिन जो पथभ्रष्ट लोग हथियार लेकर निकल पड़े हैं पैसे या जिहाद या फिर AFSPA के विरोध के नाम पर उनका क्या किया जाए ? उनके मानविकी पक्ष का ध्यान कैसे दें जो आपके मानवीय पक्ष का ध्यान नही रखेंगे ?
और कुछ लोग कहते हैं जनमत संग्रह के आधार पर कश्मीर का फैसला करने पर उनके प्रति मेरी सहानुभूति है क्यूंकि वो कुछ भी कर लें पर जनमत संग्रह के आधार पर ये फैसला नही लिया जा सकता है , जनमत संग्रह हो चुका है और कश्मीर भारत का अभिन्न हिस्सा था , है और रहेगा ! यही सच्चाई है लोगों को राजनैतिक अथवा व्यक्तिगत लाभ के लिए मत भटकाइए ! धारा ३७० भी एक सच्चाई है , कश्मीर है तो धारा ३७० भी रहेगी ! हाँ वहाँ के कश्मीरी पंडितों के पुनर्वसन के लिए प्रयास करना होगा ! यहाँ हर चीज दो पक्षों में बंटी हुई है एक सिर्फ afspa के पीड़ितों को ही दिखायेगा दूसरा सिर्फ सैनिको पर हो रहे पथराव और आतंकी की बात करेगा हमें दोनों दृष्टि रखनी होगी ! वहां के प्रचलित अलगाववादी विचार धारा के दमन के लिए कूटनीतिक स्तर पर प्रयास , वहां के लोगों को मानवीय आधार पर मुख्य धारा में लाने का प्रयास और तथाकथित पथभ्रष्ट लोगों के पूर्ण दमन दोनों ही आवश्यक है!

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